रोगप्रतिकारक शक्ती और आयुर्वेद,personal hygiene and health pramotion,natural immunity booster

बिमारीयो से बचे और रोगप्रतिकारक शक्ती बढाने के लिये आयुर्वेद 

स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं
आतुरस्य व्याधी परिमोक्ष

आयुर्वेद के सात रक्षा-कवच

आहार, विहार, स्वस्थवृत्त, सद्वृत्त, पंचकर्म, रसायन और औषधि, जीवन तथा मृत्यु के मध्य आयुर्वेद के सात रक्षा-कवच हैं।
जब तक इन सात रक्षा-कवचों को मजबूत न रखा जाये तब तक बीमारियों से बचाव करना या स्वस्थ रहना संभव नहीं है।
 शरीर का व्याधिक्षमत्व या इम्यूनिटी, स्वास्थ्य या रुग्णता, हितकारी और सुखकारी आयु आदि अन्ततोगत्वा इन्हीं सात रक्षा-कवचों की दीर्घकालिक स्थिति से निर्धारित होते हैं।
 कहने को तो ये सात रक्षा-कवच साधारण हैं, किन्तु इनमें आयुर्वेद की समग्रता समाहित है|

जैसा कि आज की जीवन शैली से स्पष्ट है, हम सात में से उन छह दीवारों को तोड़ रहे हैं जो हमारे स्वास्थ्य और रुग्णता के बीच मौजूद हैं।

ये सात दीवारों को पुनः समझें तो 1 आहार या खान-पान, 
2 विहार या जीवनशैली, 
3 स्वस्थवृत्त या व्यक्तिगत स्वास्थ्य से जुड़े आचरण, 
4 सद्वृत्त या व्यक्तिगत सदाचरण,
5 पंचकर्म या शारीरिक विषाक्तता को बाहर करने के लिये आयुर्वेद की पांच प्रक्रियायें, 
6 रसायन या उम्र-आधारित रोगजनन को रोकने हेतु कायाकल्प उपाय और अंततः 7औषधि या चिकित्सा हैं।

जब हम पहली छः दीवारों को टूटने देते हैं, जैसा कि हम प्रायः करते हैं, तो हमारे विकल्प सीमित हो जाते हैं। हमारा जीवन सीधा दवाओं के भरोसे हो जाता है।


स्वस्थ व्यक्ती की जीवन-शैली, खान-पान, रहन-सहन कैसा होना चाहीये


तीन कारण हैं जो सभी बीमारियों को जन्म देते हैं-
जीवन में हमारे द्वारा की जाने वाली बौद्धिक त्रुटियां, इन्द्रियों का असंतुलित उपयोग और समय का प्रभाव-ये तीनों सभी प्रकार के विकारों का कारण हैं।

यदि हम त्रुटियां न करें,
 बुद्धि, इंद्रियों और समय का संतुलित उपयोग करें तो बीमारी से बचाव संभव है। 
आयुर्वेद किसी अन्य चिकित्सा प्रणाली की तुलना में अच्छे स्वास्थ्य को अधिक व्यापक और समग्र रूप से परिभाषित करता है।

लगभग 1200 ईसा पूर्व से 600 ई.पू. के दौरान आचार्य सुश्रुत, जो दुनिया के पहले सर्जन-वैज्ञानिक के रूप में प्रतिष्ठापित हैं, ने 
त्रिदोष (मूल सिद्धांत जो शरीर की फिजियोलोजी को सम्हालते हैं), अग्नि (चयापचय और पाचन तंत्र), धातुयें (शरीर के ऊतक), मलक्रिया (अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन) बराबर काम करते हैं, और आत्मा, मन और इन्द्रियां प्रसन्न रहती हैं, तो हम मान सकते हैं कि हम स्वस्थ हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर, मन और आत्मा का सुसंगत संतुलन ही स्वास्थ्य है। 

आयुर्वेद वैयक्तिक चिकित्सा का जनक है| 
Personal hygiene and health pramotion

प्रत्येक व्यक्ति के लिये प्रकृति (वात, पित्त, कफ) और सत्त्व (सत्त्व, रजस, तमस प्रवृत्ति की वर्तमान स्थिति) तथा साथ शरीर बल (जीवन शक्ति) और कई अन्य प्रासंगिक कारकों का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक होता है।

बढ़ती आयु से संबंधित रोगजनन को रोकने के लिये कुछ सामान्य निर्देशों का पालन उपयोगी है| 

उपयुक्त आहार, 
विहार (जीवनशैली, व्यायाम, नींद इत्यादि), 
सद्वृत्त (व्यक्तिगत आचरण का कोड), 
स्वस्थ्यवृत (व्यक्तिगत स्वास्थ्य का कोड), 
रसायन (वयःस्थापक और कायाकल्प), 
पंचकर्म (शारीरिक विषाक्तता को बाहर करने के लिये आयुर्वेद की पांच प्रक्रियायें) और 
औषधि (चिकित्सा) 
को न अपनाने के कारण हम तमाम रोगों की समस्या भुगतते हैं।

आहार या भोजन और पेय पदार्थ के संबंध में एक सलाह यह है कि हमारे कुल आहार का एक तिहाई फलों के रूप में होना चाहिये| सभी फलों को भोजन के आरंभ में खाया जाना चाहिए, भोजन के तुरंत बाद नहीं।

फल भी विविध प्रकार के, विविध रंगों वाले, व बहुत खट्टे नहीं होना चाहिये| केवल एक ही प्रकार का फल भी सदैव नहीं होना चाहिये, हालांकि अनार, मुनक्का और आमला सदैव खाये जा सकते हैं।

आयुर्वेदिक खाद्य पदार्थों में से कई बहुआयामी हैं: 

 खजूर, अंगूर, किशमिश, बादाम, तिल, आमलकी, लहसुन, अदरक, काली मिर्च, हल्दी, केसर, जीरा, धनिया, शहद, गाय का दूध, गाय का घी, गुड़ और त्रिफला आदि।

यदि इन्हें उचित तरीके से लिया जाता है, तो वे फ्री-रेडिकल्स की सफाई और ऑक्सीडेटिव-तनाव में कमी में लाने में सहायता करते हैं।

ये दर्द को कम करते हैं। ये भोजन, रसायन और औषधि सब कुछ एक में हैं। ये स्वास्थ्यकर हैं।

भोजन तब ही लिया जाना चाहिये जब भूख लगी हो अर्थात जब पहले खाया हुआ खाना पूरी तरह से पच गया हो। चाय यदि छोड़ नहीं सकें तो कम तो कर ही देना चाहिये|green tea ले सकते है।

चाय की बजाय फलों का रस, आयुर्वेदिक क्वाथ या जड़ी-बूटियों का काढ़ा दिन में दो-तीन बार लिया जा सकता है।

छाछ सबसे अच्छा पेय होता है, जिसे जीरा, कालीमिर्च और थोड़े से सैन्धव नमक के साथ लिया जाना चाहिये। 
बाकी सब नमक छोड़कर सैन्धव नमक का उपयोग करना चाहिये।

खाने में सभी स्वाद या रस (मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय) खायें। 
भोजन की शुरुआत हमेशा मधुर रस से और अंत हमेशा कटु, तिक्त व कषाय रस के साथ होना चाहिये।

यदि आपके पास अंत में खाने के लिये कटु, तिक्त या कषाय रस नहीं बचा तो एक चुटकी काली मिर्च से भोजन समाप्त करना अच्छा विकल्प है|

भोजन कितना खायें?
 यह आपके पेट की अग्नि-क्षमता पर निर्भर करता है| लेकिन याद रखें कि पेट के एक तिहाई हिस्से में ठोस भोजन, एक तिहाई में तरल पदार्थ, और पेट के शेष तीसरे भाग को पाचन-क्रिया के कुशलतापूर्वक संपन्न होने के लिये खाली छोड़ देना चाहिये।

निद्रा अच्छे स्वास्थ्य के तीन स्तंभों में से एक है, और यह स्वास्थ्य को बनाये रखने और बढ़ती उम्र के कारण होने वाले रोगों को रोकने में महत्वपूर्ण है।

दरअसल, सुख और दुख, पोषण और कुपोषण, शक्ति और कमजोरी, उर्वरता और बांझपन, ज्ञान और अज्ञान, जीवन और मृत्यु सब उचित नींद पर निर्भर करते हैं। अत्यधिक नींद या नींद का अभाव खुशी और दीर्घायु दोनों को छीन लेते हैं|

उचित मात्रा में नींद खुशी और दीर्घायु प्रदान करती है| रात के दौरान न्यूनतम 7 घंटे नींद लें। लेकिन 8 घंटे से अधिक समय तक नहीं सोना चाहिये|

दिन के दौरान सोना हानिकारक है| किसी कारण से थक जाने या बीमार होने पर दिन में सोया जा सकता है|

स्वस्थ आयु के लिये आयुर्वेद स्वयं की देखभाल करने हेतु दिनचर्या सुझाता है। इनमें सुबह जागने, मल-विसर्जन, स्वच्छता, अभ्यंग, खान-पान, रहन-सहन, आवाजाही, उठाना-बैठना आदि शामिल हैं।

सोना, जागना, मुंह, दांतों, आँखों, नाक, कान और त्वचा की देखभाल, सफाई प्रक्रिया, योग आदि भी इसी चर्या के अंग हैं। ये सभी दिन, रात और मौसम (दिनचर्या, रात्रिचर्या,ऋतुचर्या) के अनुसार  तारतम्य बनाते हुये उम्र-आधारित रोगजनन को रोके रहते हैं।

हल्के गुनगुने खोबर तेल coconut oil से नियमित अभ्यंग अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखने और बढ़ती उम्र के साथ होने वाले रोग परिवर्तनों को विलंबित करने में फायदेमंद होगा।

अभ्यंग को नियमित रूप से दैनिक या कम से कम साप्ताहिक जीवनशैली में शामिल किया जा सकता है क्योंकि यह दोषों के संतुलन को पुनर्स्थापित करते हुये कल्याणकारी दीर्घायु प्रदान करता है|

 सुबह नस्य उपयोगी है। नस्य के लिये घी या तिल तेल भी उपयोगी होते हैं| यह वायरल संक्रमण को दूर रखने में सक्षम बनाता है और स्वास्थ्य के अनेक लाभ देता है|

हमें योग-आसन, प्राणायाम और ध्यान-प्रतिदिन करना चाहिये। व्यायाम भी करना चाहिये।

व्यायाम हमेशा अपनी शक्ति या बल के आधे तक या व्यक्तिगत क्षमता के आधे तक करना चाहिये, ज़्यादा नहीं| व्यायाम बहुत थकावट के स्तर तक नहीं करना चाहिये।


दिनचर्या  दीर्घायु और स्वास्थ्य प्रदान करती है| 
आजकल की जोखीम भरी जीवनशैली के कारण थकान, भटकाव, अनिद्रा और कई बीमारियों के लिये बढ़ते जोखिम को कम कर सकती है। योग और व्यायाम भी संतुलन बहाल करते हैं।

ऊतकों या धातुओं के पोषण व शक्ति के लिये पंचकर्म या शुद्धि और कायाकल्प बहुत उपयोगी है| उम्र-संबंधी रोगजनन को रोकने में भी बहुत उपयोगी है।

इसी तरह रसायन भी आयुर्वेद के चमत्कार हैं जो दीर्घायु, स्मृति, बुद्धिमत्ता, बीमारी से लड़ने की क्षमता, शरीर की चमक, रंग और आवाज, शक्ति, वाणी, आदि तमाम लाभ प्रदान करते हैं।

रसायन शरीर की कोशिकाएं और ऊतकों को उत्कृष्ट स्थिति में रखते हैं। रसायन आज तक ज्ञात सर्वोत्तम और सुरक्षित एंटीऑक्सीडेंट हैं|

आयुर्वेद में स्वास्थ्य-रक्षण बहोत महत्त्व पूर्ण है

अस्वास्थ्यकर जीवनशैली के कारण रोगोत्पत्ति होती है

आयुर्वेद द्वारा जीवनशैली-आधारित रोगों से निपटने के लिये 
दिनचर्या, रात्रिचर्या, स्वास्थ्यवृत्त, मानसिक सद्वृत्त, चारित्रिक सद्वृत्त, सामाजिक सद्वृत्त, योग, ध्यान और प्राणायाम आवश्यक है



 आयुर्वेद मे युक्ति से उम्र बढ़ाई जा सकती है।

युक्ति से स्वस्थ रहा जा सकता है|  आयुर्वेद  आयु का विज्ञान है। 

आयुर्वेद  सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत का अद्वितीय उदाहरण भी है|

आयुर्वेद उस महावाक्य का जीता-जागता प्रमाण है जिसे महर्षि अग्निवेश ने "सत्यो नाम यथार्थभूतः" कहा है (च.वि.8.38)| 

परन्तु केवल ज्ञान की उपलब्धता स्वास्थ्य में सुधार नहीं ला सकती। इस जानकारी का उपयोग आप अपनी आयु को हितकारी एवं सुखकारी बनाने में करेंगे तभी लाभ है। ज्ञान को कार्य से जोड़ना और जीवन में आत्मसात करना आवश्यक है।

आयुर्वेद पर जितनी अधिक चर्चा हो उतनी ही उपयोगी है| 

यहां प्रस्तुत की जाने वाली जानकारी इन समस्याओं से मुक्त रहने में निरंतर आपकी मदद करती रहे।

जब एक व्यक्ति गलती करता है तो वह केवल स्वयं बीमार होता है,
 जब समाज प्रज्ञापराधी होता है तो सामाजिक-सांस्कृतिक, पारिस्थितिक और आर्थिक व्यवस्था चौपट हो जाती है, और जब  प्रज्ञापराधी होने लगती है तो जनपदोध्वंस होता है।

आयुर्वेद के ज्ञान को ऐसा भुलाया कि शरीर अनेक रोगों की भूमी बनता जा रहा है। 

यहाँ प्रस्तुत की गयी जानकारी इन समस्याओं से मुक्त रहने में निरंतर आपकी मदद करती रहे, यही कामना है।

यहाँ दिये गये सुझाव बहुत संक्षेप में हैं पर शुरुआत करने के लिये पर्याप्त हैं| 

अपने आयुर्वेदाचार्य के साथ मिलकर आप इस जानकारी का उपयोग स्वयं को स्वस्थ रखने में कर पायेंगे ऐसी आशा है|

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